Places of Worship Act: सोमवार 17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट से जुड़े कई याचिकाओं पर सुनवाई होनी थी। हालांकि अब ये सुनवाई टल गई है। जानकारी के लिए बता दें कि अब इसपर अगले महीने मार्च में दुबारा सुनवाई होने वाली है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया कि मामला तीन जजों की बेंच सुनेगी। जबकि सोमवार को दो ही जजों की बेंच बैठी है। आगे इस रिपोर्ट में हम विस्तार से जानेगे कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) क्या है व इसको लेकर किन लोगों ने याचिका दायर की है।
Places of Worship Act: जानें क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट

पिछले कुछ महीनों से देश में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर काफी चर्चाएं हो रही हैं। भारत में यह उन मुद्दों में से है जिसको लेकर हालिया समय में काफी बातें हुई हैं। इस एक्ट की अगर बात करें तो यह साल 1991 में लागू किया गया था। इसके तहत 15 अगस्त, 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता है।
उदाहरण के तौर पर देश का कोई भी नागरिक, संस्था या सरकारें मंदिर को मस्जिद में या मस्जिद को मंदिर में नहीं बदल सकती। अगर कोई ऐसा करने का प्रयास करता है तो उसपर जुर्माना लग सकता है। साथ ही आरोपी शख्स को तीन साल तक के लिए जेल की हवा खानी पड़ सकती है।
Places of Worship Act: इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट साल 1991 में तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार द्वारा लाई गई थी। उस वक्त बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा काफी गर्म था। तब इस एक्ट को लागू किया गया था। वहीं इसके खिलाफ बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय, धर्मगुरु स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर, सुब्रमण्यम स्वामी, काशी की राजकुमारी कृष्ण प्रिया, रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर अनिल कबोत्रा, एडवोकेट चंद्रशेखर, रुद्र विक्रम सिंह, वाराणसी आदि ने याचिका दाखिल की थी।
Read More Here: