भारत ने हमेशा से 2036 ओलंपिक(Olympic) खेलों की मेज़बानी का सपना देखा है, और अब इस सपने को हकीकत बनाने की दिशा में पहला ठोस कदम उठाया गया है। भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) ने हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) को एक आधिकारिक पत्र भेजकर 2036 ओलंपिक की मेज़बानी का दावा पेश किया है। इस महत्वपूर्ण कदम के साथ ही भारत ने ओलंपिक की मेज़बानी के लिए अपनी इच्छाशक्ति को जाहिर किया है, लेकिन अब सवाल यह उठता है कि यदि भारत को यह मौका मिलता है, तो इसके लिए कितना खर्च आएगा?
Olympic की पिछली मेज़बानियों से तुलना
भारत ने पहले भी बड़े खेल आयोजन करवाए हैं, जैसे कि 2010 के राष्ट्रमंडल खेल। उस समय भारतीय सरकार ने इन खेलों की मेज़बानी पर करीब 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 12,617 करोड़ रुपये) खर्च किए थे, हालांकि वास्तविक खर्च इससे कहीं अधिक था। इन खेलों का असली बजट लगभग 70,000 करोड़ रुपये था, जिसमें दिल्ली मेट्रो के विस्तार और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का खर्च भी शामिल था। अब, अगर भारत ओलंपिक खेलों की मेज़बानी करता है, तो यह निश्चित रूप से एक और विशाल वित्तीय प्रयास होगा।
पेरिस 2024 ओलंपिक्स का उदाहरण लें, तो वहां इन खेलों को आयोजित करने में लगभग 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 75,705 करोड़ रुपये) खर्च हुए थे। हालांकि, यह राशि कम दिखाई देती है, क्योंकि पेरिस ने खेलों की मेज़बानी के लिए स्मार्ट तरीके से खर्च किया। लेकिन जब बात ओलंपिक की हो, तो यह हमेशा एक बड़े पैमाने पर खर्च होने वाला आयोजन होता है।
बीजिंग Olympic रहा सबसे महंगे
ओलंपिक खेलों का सबसे महंगा आयोजन अब तक 2008 में बीजिंग में हुआ था। उस दौरान कुल 6.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 43 बिलियन अमेरिकी डॉलर, यानी भारतीय मुद्रा में 3,61,703 करोड़ रुपये) का खर्च आया था। इसमें केवल खेलों की मेज़बानी ही नहीं, बल्कि बीजिंग के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास, एक्सप्रेसवे, रेल सुविधाओं और अन्य संबंधित कार्यों का खर्च भी शामिल था। बीजिंग ओलंपिक्स ने पूरी दुनिया को यह दिखाया कि ओलंपिक खेलों की मेज़बानी एक बड़ा वित्तीय प्रयास होता है।
इससे यह साफ होता है कि यदि भारत को 2036 ओलंपिक की मेज़बानी मिलती है, तो उसे भारी खर्च का सामना करना पड़ेगा। हालांकि, इसके बावजूद इस आयोजन से मिलने वाली वैश्विक पहचान और खेलों में देश की भागीदारी के फायदे भी अपार हो सकते हैं।
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