Ratan Tata : देश के जाने-माने उद्योगपति रतन टाटा (Ratan Tata) पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। उनका बीती रात बुधवार 9 अक्टूबर 2024 को निधन हो गया, वह 86 वर्ष के थे। रतन टाटा ने न सिर्फ टाटा समूह को ही बुलंदियों के शिखर तक पहुंचाया बल्कि भारतीय उद्योग को वैश्विक मंच पर एक प्रतिष्ठित स्थान भी दिलाया।

पीएम ने जताया शोक

दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा (Ratan Tata) के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म‌ X पर संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि

"मेरे मन में श्री रतन टाटा जी के साथ हुई अनेकों मुलाकातों की यादें ताज़ा हैं. जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, तब हम अक्सर विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते थे. उनकी विचारधारा हमेशा गहन और समृद्ध होती थी. ये संवाद दिल्ली आने के बाद भी जारी रहे. उनके निधन से अत्यंत दुःखी हूँ। इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार, मित्रों और प्रशंसकों के साथ हैं. ओम शांति"

Ratan Tata के बारे में कुछ खास तथ्य

रतन टाटा (Ratan Tata) का जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार में साल 1937 में हुआ था, लेकिन आपसी अनबन के चलते उनके माता-पिता 1948 में अलग हो गए। उस समय रतन टाटा की उम्र मात्र 10 वर्ष थी, फिर उनका पालन पोषण उनकी दादी नवाज़ बाई टाटा द्वारा किया गया था।

साल 1962 में कार्नेल यूनिवर्सिटी से रतन टाटा ने बी. आर्क की डिग्री हासिल की, फिर जब भारत चीन युद्ध के दौरान 1962 में वह भारत लौटे उस समय उन्होंने लास एंजिल्स में जोंस और इमन्स के साथ कुछ समय के लिए काम भी किया।

साल 2008 में वह भारत सरकार द्वारा 'पद्म विभूषण" की उपाधि से नवाजे गए। इसके बाद 28 दिसंबर 2012 को टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में वह सेवा निवृत भी हुए।

कैसा रहा Ratan Tata का सफर

रतन टाटा (Ratan Tata) देश के एक बड़े उद्योगपति ही नहीं थे बल्कि वह वास्तव में भारत के अनमोल रतन थे, जिनके जीवन का सफर प्रत्येक व्यक्ति के लिए बहुत ही प्रेरणादायक रहा है। उन्होंने अपनी कठिन मेहनत और कुशल नेतृत्व के चलते देश-विदेश तक एक अमिट पहचान बनाई है। नीचे दी गई तालिका के माध्यम से हम उनके जीवन से जुड़े कुछ अहम पहलुओं के बारे में भी जानते हैं।

टाटा ग्रुप की संभाली कमान

रतन टाटा ने टाटा ग्रुप को ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। आज टाटा ग्रुप का नाम देश विदेश तक फैला हुआ है। उन्होंने साल 1991 में ऑटोमोबाइल से लेकर स्टील तक के विभिन्न उद्योगों में टाटा समूह की बागडोर संभाली। फिर चाहे बात नमक से लेकर एयर इंडिया तक क्यों ना की जा रही हो, साल 1996 में उनके द्वारा टाटा -टेली सर्विसेज की स्थापना की गई, और साल 2004 में टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (TCS) को सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कराया। उनका यह कदम कंपनी के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ।

कुछ ऐतिहासिक अधिग्रहण

टाटा ग्रुप को ऊंचाइयों तक पहुंचाने का श्रेय रतन टाटा को ही जाता है। वह न सिर्फ बड़े उद्योगपति बल्कि बड़े समाज सुधारक और दानवीर भी रहे हैं। उन्होंने टाटा ग्रुप को बुलंदियों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया।


1) टेटली (2000) : रतन टाटा के नेतृत्व में ही टाटा टी ने 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर में ब्रिटिश चाय कंपनी टेटली का अधिग्रहण किया, जो कि भारतीय कंपनी का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय योगदान था।

2) कोरस (2007) : रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा स्टील द्वारा 6.2 बिलियन पाउंड में यूरोप की दूसरी बड़ी दूसरी सबसे बड़ी स्टील निर्माता कंपनी कोरस का अधिग्रहण किया गया, जोकि भारतीय स्टील उद्योग का अब तक का सबसे बड़ा सौदा रहा।

3) जगुआर लैंड रोवर (2008) : रतन टाटा (Ratan Tata) के नेतृत्व में टाटा मोटर्स द्वारा 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर में प्रतिष्ठित ब्रिटिश कार ब्रांड "जगुआर और लैंड रोवर" का अधिग्रहण किया गया, जो कि टाटा मोटर्स के लिए एक बहुत बड़ा सौदा रहा। इस सौदे ने टाटा कंपनी को वैश्विक ऑटोमोबाइल बाजार में एक बहुत ही प्रतिष्ठित और सफलतम स्थान दिलाया।

किसके हाथों में है टाटा ग्रुप की कमान

रतन टाटा (Ratan Tata) 28 दिसंबर 2012 में टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पद से रिटायर हुए। फिर साल 2017 में टाटा ग्रुप की कमान एन चंद्रशेखरन के हाथों में सौंपी गई। इससे पहले वह टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (TCS) के सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर भी रह चुके हैं।

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