भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच गौतम गंभीर के लिए समस्याएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट और श्रीलंका के खिलाफ वनडे सीरीज हारने के बाद जहां उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था, वहीं अब दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश ने उनकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया है। यह मामला गौतम गंभीर पर धोखाधड़ी के आरोपों से जुड़ा है, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आरोपमुक्त करने के आदेश को रोक दिया है।

दिल्ली हाईकोर्ट का अहम आदेश

दिल्ली हाईकोर्ट ने घर खरीदारों के साथ कथित धोखाधड़ी के मामले में गंभीर को मिली राहत पर रोक लगाते हुए, निचली अदालत के फैसले पर सवाल उठाए हैं। हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए इस मामले में दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है। सत्र अदालत ने इससे पहले मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा गंभीर को आरोप मुक्त किए जाने के आदेश को रद्द कर दिया था और इसे मामले की गहन जांच का आदेश दिया था।

29 अक्तूबर के अपने फैसले में सत्र अदालत ने कहा था कि मजिस्ट्रेट अदालत का निर्णय आरोपों की गंभीरता पर समुचित विचार नहीं दर्शाता। अदालत ने आदेश दिया था कि गंभीर की भूमिका की फिर से जांच होनी चाहिए और नए सिरे से विस्तृत आदेश पारित किया जाए।

गौतम गंभीर और रियल एस्टेट घोटाला

यह मामला रियल एस्टेट कंपनियों रुद्र बिल्डवेल रियल्टी प्राइवेट लिमिटेड, एचआर इंफ्रासिटी प्राइवेट लिमिटेड और यूएम आर्किटेक्चर एंड कॉन्ट्रैक्टर्स लिमिटेड से जुड़ा है। इन कंपनियों के जॉइंट वेंचर में गौतम गंभीर निदेशक और ब्रांड एम्बेसडर के तौर पर जुड़े थे। फ्लैट खरीदने वाले निवेशकों ने इन कंपनियों और गंभीर पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया था।

सत्र अदालत ने पाया कि गौतम गंभीर उन कुछ लोगों में शामिल थे, जिनका निवेशकों के साथ सीधा संपर्क था। हालांकि, आरोपपत्र में यह स्पष्ट नहीं था कि धोखाधड़ी की राशि का कोई हिस्सा उनके पास पहुंचा था या नहीं। इसके बावजूद, मजिस्ट्रेट अदालत ने उन्हें आरोप मुक्त कर दिया था। यही वजह रही कि सत्र अदालत ने इस फैसले को पलटते हुए गहराई से जांच के आदेश दिए।

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